भ्रूण हत्या से भी बड़ी एक हत्या

कुछ दिन पहले एक इंटरव्यू पढ़ रही थी किसी आईपीएस/आईएएस का- उस इंटरव्यू में साफ़ शब्दों में, बड़े गर्व के साथ बताया गया था- इस सफलता का श्रेय मैं मेरे पापा को देती हूँ, उन्होंने मुझे कभी लड़की की तरह नहीं पाला, हमेशा लड़के की तरह रखा और पढाया| यक़ीनन गर्व की बात थी, इतनी बड़ी पोस्ट जो मिली थी वो भी मेहनत और घरवालों के सपोर्ट से, परन्तु एक सवाल यहाँ आकर खड़ा हो जाता है ?
ये मेरी तीसरे नंबर की बेटी है, है तो ये मेरी बेटी बट इसने मेरा नाम बेटे की तरह रौशन किया है | जब ये पैदा हुई थी तो घर में मातम छा गया था, परन्तु जिस तरह इसने परिवार के नाम को एक बेटे की तरह ऊचा किया है अब मुझे इस पर नाज़ होता है|
अजी बेटी नहीं बेटा है, हीरा है, सबसे ज्यादा इस बेटे ने मुझे आत्म संतुष्टि दी है सबसे जिम्मेदार और समझदार| 
बात सिर्फ यहाँ ही ख़तम नहीं हो जाती आप देखिये किसी भी रियलिटी शो ( कही भी) में जब बेटियां कुछ कर दिखाती है तो अक्सर माँ- बाप से सुंनने को मिलता है कि इसने मेरा इतना नाम रौशन किया है ये "मेरी बेटी नहीं ये मेरा बेटा है"| जब उम्मीदें  बहुत आगे होती हैं तो लोगों को और  भी यही चिल्लाते सुना है कि आगे जाकर ये मेरा नाम एक बेटे की तरह रौशन करेगी| ऐसे तमाम रियलटी शो, सेरिअल्स,इंटरव्यूज, कहानी, किस्से, कवितायेँ फिल्में और न जाने क्या- क्या जहाँ अक्सर लोग अपने बच्चियों की सफलता को यही कह कर प्रोत्साहित करते हैं | 
ऐसा लगता है मानो लोग पहले से ही मान के बैठे हैं कि बेटियों को बेटी समझ कर पढाया ही नहीं जा सकता| अगर बेटियों को घर से बाहर  भेजना है तो उसे बेटा मानना ही पड़ेगा| बेटियां -बेटी होकर कभी नाम रौशन कर ही नहीं सकती, और  अगर कर भी देती हैं तो न जाने क्यों उनको बेटों का दर्ज़ा दे दिया जाता है| मज़े की बात तो ये भी है कि हममें से ज्यादातर बेटियां ये सुनकर खुश हो जाती हैं कि हमें बेटों का दर्ज़ा दिया जा रहा है|

जब घर से बाहर पढने गयी तो घर में मैंने भी अक्सर सबको यही कहते सुना- वर्षा ( मेरा घर का नाम)तो बेटा है, बेटी होते हुए भी बेटों से आगे है| एकदिन खीज कर माँ को बोल दिया, ऐसा न कहा करो, पता नहीं क्यों अच्छा नहीं लगता, करना है तो ऐसे ही  प्रोत्साहित कर दो|  उस वक़्त समझ नहीं आया था कि इतना बुरा क्यों लगता है,और शायद परिवार वालों को भी समझ नहीं आया होगा परन्तु कहना छोड़ दिया|
अरे मैं तो कहती हूँ भला हो उन लोगो का जो बेटी को पैदा होते ही मार देते हैं या पैदा होने से पहले ही मार देते हैं (कटाक्ष) क्योंकि इस हत्या से बड़ी हत्या और क्या हो सकती है कि बड़ा होने के बाद बेटी जब  नाम रौशन कर दे तो उसको बेटी ही न रहना दिया जाये|


बात यहाँ बेटा या बेटी की नहीं साहेब, और न ही मैं लड़कों के विपक्ष में हूँ| मुझे लगता है सबसे बड़ा अपमान/हत्या किसी की पहचान छिनना है|( फिर चाहे उस जगह कोई भी हो)
और यह पहचान आज से नहीं सदियों से छिनती आई है, जिसका एहसास भी नहीं होने दिया गया|

अब देखना तो ये है कि आने वाली फिल्म 'दंगल' में किस तरह से बेटियों को दिखाया गया है, बेटी ही रखा है या कुछ अलग करने पर उन्हें भी बेटों का दर्ज़ा देकर समान्नित (कहूँ या अपमानित ) किया जायेगा| 


....अब और नहीं...

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