बन्धनों को खोलता प्रेम
हर ग्रन्थ, किताब या कहूँ व्यक्ति ने
प्रेम को अलग-अलग तरीके से महसूस किया और इसे दुनिया की सबसे खुबसूरत भावना के रूप
में बताया| कहते हैं सबरी ने राम को अपने झूठे फ़ल खिला दिए
थे, और तो और मीरा ने कृष्णा के प्रेम में पड़ कर विष के
प्याले को अमृत समझकर पी लिया था| ऐसे न जाने कितने उदाहरण
है जिन्हें सिर्फ उन व्यक्ति विशेष ने जिया है औए अंत में जान देकर प्रेम को अमर
किया है| अंत में त्याग ही हमेशा विजयी रहा है उसका कारण
शायद यही है कि न तो आज और न ही युगों पहले लोगों ने इस खुबसूरत एहसास को स्वीकारा|
रूमी ने प्रेम को जिस तरह परिभाषित किया, वह इंसान मात्र की कल्पना से परे रहा है| वस्तु से, मित्र से, कलम से, लिखने से, प्रेमिका से, आदि|
अरे! ये कैसा प्रेम है जिसमे कोई शर्त नहीं, सिर्फ
लगन ही लगन और वो भी ऐसी लगन जो सीधे प्रभु से मिलाने की बात करती हो| जिसमे प्रेम मिलने या एक होने की नहीं बल्कि सिर्फ समर्पण और प्रसन्नता
भाव को प्राथमिकता देता हो|
प्रेम ही एक मात्र सत्य है जो सबको जीना सिखाता है- आनंदमय
जीवन|
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